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]]>संविधान द्वारा कुछ मूलभूत सिद्धान्तों और प्रशासनिक एवं प्रतिनिधि संस्थाओं के एक संरचनात्मक ढांचे की व्यवस्था की जाती है, लेकिन यह संरचनात्मक ढांचा व्यावहारिक राजनीति की परिस्थितियों से परिचालित होता है और उसमें निरन्तर विकासशीलता एवं बदलाव की स्थिति होती है। व्यावहारिक राजनीति के तनाव और दबाव ही उसे सजीवता और शक्ति प्रदान करते हैं अथवा उसकी दुर्बलता के कारण बनते हैं। पिछले दशक में तो भारतीय राजनीति का घटनाचक्र निरन्तर और बहुत अधिक तीव्र गति से परिवर्तित होता रहा है तथा इस घटनाचक्र का विश्लेषण किए बिना संवैधानिक ढांचे की मीमांसा कर पाना सम्भव नहीं है, अतः मूल संवैधानिक ढांचे को आधार बनाकर और व्यावहारिक राजनीति के निरन्तर बदलते हुए परिप्रेक्ष्य को दृष्टि में रखते हुए संविधान तथा सरकार के वास्तविक व्यावहारिक अध्ययन का प्रयास प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है। पुस्तक का प्रत्येक अध्याय ‘संविधान’, ‘सरकार’ या ‘राजनीति’ के किसी विशिष्ट पहलू की विश्लेषणात्मक समीक्षात्मक विवेचना प्रस्तुत करता है।
पिछले लगभग पांच दशकों से भारतीय राजनीति का समस्त घटनाक्रम बहुत अधिक विवाद का विषय रहा है। इस विवादास्पद राजनीतिक घटनाचक्र के सम्बन्ध में निष्पक्ष और सन्तुलित दृष्टिकोण अपनाने की चेष्टा पुस्तक में की गई है। पुस्तक भारतीय राजनीति और शासन के बदलते हुए स्वरूप का अनुभवात्मक अध्ययन है। यद्यपि पुस्तक में शासन के संस्थागत पक्ष का भी उल्लेख किया गया है, किन्तु इस बात का यथासम्भव प्रयत्न किया गया है कि विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं के ऐतिहासिक और सैद्धान्तिक पक्ष पर अधिक बल न देकर उसके ‘व्यावहारिक’ स्वरूप को सामने लाया जा सके।
पुस्तक में विषय की ‘आद्योपान्त’ विवेचना प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। मूल अधि कार, संविधान संशोधन, राजनीतिक दल, राज्य राजनीति के सामाजिक-आर्थिक निर्धारक, राज्यों की राजनीतिे, प्रकृति, प्रारूप एवं उभरती प्रवृत्तियां, राज्य राजनीति के सैद्धान्तिक आधार, राष्ट्रीय राजनीति का राज्य राजनीति पर प्रभाव, विभिन्न राज्यों में मानव सूचकांक, मिली-जुली (गठबन्धन) सरकार, संघ-व्यवस्था, केन्द्र-राज्य सम्बन्ध, देश के नव-निर्वाचित चैदहवें राष्ट्रपति कोविंद सहित राष्ट्रपति निर्वाचन, 16वीं लोकसभा (अप्रैल-मई 2014) के चुनाव परिणामों का विश्लेषण, हिंसा एवं आतंकवाद की राजनीति, भारतीय संविधान की कार्य-प्रणाली की समीक्षा आदि के प्रसंग में विशेष रूप से इस बात को दृष्टि में रखा गया है कि पाठक नवीनतम् संवैधानिक एवं राजनीतिक स्थिति का परिचय प्राप्त कर सकें। संवैधानिक स्थिति को स्पष्ट करने के लिए नवीनतम् उदाहरण राजनीतिक घटनाचक्रों से दिए गए हैं, जिससे पुस्तक अधिकाधिक रोचक हो सके और विद्यार्थी भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को सही संदर्भों में समझ सकें। अक्टूबर 2015 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 99वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम (2014) को असंवैधानिक घोषित किया गया, जिसे पुस्तक में यथा-स्थान सम्मिलित किया गया है। 100वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2015ए 101वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2016 तथा 102वां संवैधानिक अधिनियम, 2018 का यथास्थान उल्लेख किया गया है।
पुस्तक की भाषा-शैली बहुत ही सरल और रोचक रखी गई है। पुस्तक में यथास्थान आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक विवेचनाएं प्रस्तुत की गई हैं और भारतीय संविधान से संबंधित बहुचर्चित मुद्दों को संतुलित नजरिए से प्रस्तुत करने की चेष्टा की गई है।
भारतीय शासन एवं राजनीति Indian Government and Politics Book विषय-सूची
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