भूगोल (भौगोलिक चिन्तन का विकास) [Geography (Evolution of Geographical Thought) Book For B.A. III Year of Deen Dayal Upadhyaya Gorakhpur University, Siddharth University Kapilvastu & Kumaun University
‘पर्यावरण और विकास’ के अध्ययन में भूगोल की महत्ता इस बात से प्रमाणित है कि यही एकमात्र विषय है, जो भौतिक परिवेश और मानवीय क्रिया-कलापों का सम्यक मूल्यांकन करता है। पारिस्थितिकी और पारिस्थितिकी-तन्त्र की संकल्पनाओं को वनस्पतिशास्त्रियों ने पेड़-पौधों तक ही सीमित रखा था, लेकिन ‘मानव पारिस्थितिकी’ को इस पुस्तक में समाहित कर मानव और पर्यावरण के सम्बन्धों को उजागर किया गया है। इस पुस्तक में ‘जीवमण्डल की संकल्पना’ को स्पष्ट करते हुए जीवमण्डल व मानव की अन्योन्य क्रियाओं एवं उनके गतिक सम्बन्धों की व्याख्या की गई है। ‘पारिस्थितिक-तन्त्र की संरचना’ में जैविक एवं अजैविक तत्वों की भूमिका समझाई गई है। वर्तमान काल में पारिस्थितिकी संकट, पर्यावरण ह्रास, पर्यावरण प्रदूषण एवं वन विनाश से उत्पन्न मृदा अपरदन, मरुस्थलीकरण, ऊर्जा संकट, भूमण्डलीय तापन एवं जलवायु परिवर्तन आदि की स्पष्ट व्याख्या करते हुए पर्यावरण के सतत विकास हेतु किए जा रहे प्रयासों का उल्लेख किया गया है।
विश्व में विभिन्न प्राणियों, पादपों, वनस्पतियों तथा सूक्ष्म जीवों की समग्रता को ‘जैव-विविधता’ कहा जाता है। पृथ्वी पर जीवन की विविधता, मानव की भोजन एवं अन्य आवश्यकताओं के लिए जनसंख्या की जैव विविधता पर निर्भरता, जैव विविधता को प्रभावित कर रही मानव की क्रियाशीलता, जातियों के विलोप की दर में वृद्धि के कारणों और जैव विविधता के संरक्षण के लिए उपायों का अध्ययन भी इस पाठ्य-पुस्तक में समाहित किया गया है।
‘पर्यावरण संरक्षण’ वर्तमान काल की महती आवश्यकता है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति विश्वव्यापी चेतना उत्पन्न हुई है। विश्व के सभी देश, विश्व के विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ पृथ्वी के अस्तित्व को बचाए रखने के विभिन्न उपाय कर रहे हैं। भारत भी पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयासरत है। इसके लिए विश्व स्तर पर पर्यावरणीय शिक्षा प्रदान करने का कार्यक्रम तैयार किया गया है। पर्यावरणीय शिक्षा में व्याख्यानों, प्रदर्शनियों, पर्यटनों, संगोष्ठियों एवं प्रशिक्षण द्वारा जनमानस की पर्यावरणजन्य चेतना को जाग्रत किया जा रहा है, जिससे पर्यावरण प्रबन्धन कर सतत पर्यावरण विकास किया जा सके।
भूगोल (भौगोलिक चिन्तन का विकास) [Geography (Evolution of Geographical Thought) Syllabus
Unit I Meaning and sub division of Geography. Geography in Ancient Classical period-contribution of Indian, Greek and Roman scholars.
Unit II Geography in Middle Ages—Contribution of Arab Geographers, Renaissance period in Europe, Renowned Travellers-explorations & discoveries. Organization of Geographic knowledge and Varenius.
Unit III German and French Schools—Contributions of Kant, Humboldt, Ritter Ratzel, Richthofen, Hattner; Blache and Brunhes.
Unit IV Anglo-American Schools—Concepts and Contributions of Mackinder, Herbertson, Davis, Semple, Huntigton & Carl Sauer, Russian Contributions.
Unit V Changing definition and subject matter of Geography; Geography as a science. Emergence of dominant paradigms. Determinism, Possibilism, Neo-determinism, Areal Differentiations, Spatial Organization Ecological, Progress of Geography in India.
भूगोल (भौगोलिक चिन्तन का विकास) [Geography (Evolution of Geographical Thought) Book विषय-सूची
- भूगोल का अर्थ एवं उपविभाग
- प्राचीन चिरसम्मत काल में भूगोल
- यूनान में भौगोलिक चिन्तन का विकास
- रोम में भौगोलिक चिन्तन का विकास
- मध्यकाल में भूगोल: अरब भूगोलवेत्ताओं का योगदान
- यूरोप में भूगोल का पुनर्जागरण काल
- भौगोलिक ज्ञान का संगठन
- जर्मन विचारधारा
- फ्रांसीसी विचारधारा
- आंग्ल विचारधारा
- अमरीकी विचारधारा
- भूगोल की बदलती परिभाषा
- भूगोल की विषय-सामग्री में बदलाव
- भूगोल विज्ञान के रूप में
- प्रमुख पैराडाइमों का निर्गमन
- निश्चयवाद, सम्भववाद एवं नव-निश्चयवाद
- क्षेत्रीय विभिन्नताएं
- स्थानिक संगठन
- पारिस्थितिकी
- भारत में भूगोल की प्रगति
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