अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध (International Relations) book For:
- M.A Semester I of Jiwaji University Gwalior & M.A 2 Year of University of Allahabad, Maharshi Dayanand Saraswati University Ajmer, Kurukshetra University
- M.A Semester III & IV of Sri Dev Suman Uttarakhand University Tehri Garhwal, University of Lucknow
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के अध्ययन का एक मुख्य उद्देश्य राष्ट्रों के आपसी व्यवहार तथा आचरण के मूल कारणों का व्यापक ज्ञान कराना है जिससे यह ज्ञात हो सके कि राज्यों के आपसी व्यवहार की मूल प्रेरणाएं, उनके विशिष्ट आचरण और नीतियों के मूलभूत सिद्धान्त क्या हैं? इन सिद्धान्तों का सम्यक् विवेचन और अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के उचित मूल्यांकन में अत्यधिक सहायक होता है। पाश्चात्य देशों में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के सैद्धान्तिक पक्ष पर प्रचुर साहित्य का सृजन हो रहा है। वैसे ‘अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति’ से सम्बन्धित अनेक पुस्तकें हिन्दी में प्रकाशित हुई हैं। अद्यावधि विशेषत: हिन्दी में प्रणीत पुस्तकों की शैली जटिल तथा विषय-सामग्री दुर्बोध और अस्पष्ट है। कुछ तो एक देशीय या परिचयात्मक मात्र हैं जिससे उनमें विषय का विशद विश्लेषणात्मक विवेचन नहीं हो पाया है। वास्तव में, एम. ए. तथा सिविल सर्विस प्रभृति परीक्षाओं में प्रविष्ट होने वाले अध्येयताओं के लिए कतिपय प्रसंगों के विशद विवेचन के स्थान पर एक ही पुस्तक में प्राय: सभी सहसम्बद्ध प्रसेगों की यथासम्भव अधिकतम जानकारी अभीष्ट होती है।
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध International Relations Book का प्रणयन इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए हुआ है। लेखकों ने यह पूर्ण प्रयास किया है की पुस्तक को अद्धतन (up-to-date) बनाया जाए। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध International Relations Book में ‘शीतयुद्ध का अन्त’ , ’गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता‘, ’रूप की विदेश नीति’, ‘अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की अभरती प्रवृत्तियां’, ‘यूरोप में नई आर्थिक और राजनीतिक प्रवृत्तियां’, ‘उत्तर-दक्षिण संवाद’, ‘सहयोग’, ‘अन्तर्राष्ट्रीय एजेण्डे तथा उत्तर-दक्षिण सम्बन्ध‘ एवं ’नई विश्व व्यवस्था’ जैसे अध्याय अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में आये नये बदलाव को इंगित करते हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध International Relations Book विषय-सूची
- द्वितीय विश्व-युद्ध के कारण तथा युद्धोत्तर शान्ति समझौते
- विश्व-युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय प्रवृत्तियाँ
- शीत-युद्ध की उत्पत्ति तथा विकास
- दितान्त (तनाव-शैथिल्य) एवं इसका विश्व राजनीति पर प्रभाव
- दूसरा शील-युद्ध: संवाद से टकराव
- शीत-युद्ध का अन्त
- संयुक्त राष्ट्र संघ (संगठन, कार्य प्रणाली एवं भूमिका)
- महाशक्तियां और तृतीय विश्व
- गुटनिरपेक्षता (उद्देश्य, विशेषताएं एवं प्रासंगिकता)
- साम्यवादी खेमे का बिखराव
- यूरोप का पुनर्गठन
- एशिया में विउपनिवेशीकरण एवं नए राज्यों का उदय
- अफ्रीका में विउपनिवेशीकरण एवं नए राज्यों का उदय
- संयुक्त राज्य अमेरीका की विदेश नीति
- साम्यवादी चीन की विदेश नीति
- भारत की विदेश नीति: रूपरेखा
- भारत एवं उसके पड़ोसी
- भारत की परमाणु नीति: भारत-अमेरीका असैन्य नाभिकीय सहयोग समझौता
- भारत तथा उसके इजरायल के साथ सम्बन्ध
- गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका
- भारत-अमेरीका सम्बन्ध
- भारत-रूस सम्बन्ध
- भारत-जापान सम्बन्ध
- भारत औश्र संयुक्त राष्ट्र संघ
- भारत और सार्क
- भारत और आसियान
- भारत और यूरोपीय संघ
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी
- भारत की पूर्व की ओर देखो नीति
- समसामयिक बहुध्रवीय विश्व में भारत
- रूस की विदेश नीति
- पाकिस्तान की विदेश नीति
- अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति: समसामयिक नई प्रवृत्तियां तथा मुद्दे
- फिस्तिीन समस्या तथा अरब-इजरायल विवाद
- तेल कूटनीति तथा खाड़ी संकट
- अफगान संकट
- हिन्द महासागर
- यूरोप में नई आर्थिका और राजनीतिक प्रवृत्तियां
- लैटिन अमेरीका का अभ्युदय
- अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में दक्षिण एशिया
- अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में दक्षिण-पूर्वी एशिया
- बदलता विश्व परिदृश्य: नई विश्व-व्यवस्था
- नवीन अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग
- उत्तर-दक्षिण संवाद
- भूमण्डलीकरण (वैश्वीकरण) और विकासशील देशों के हित
- मानव अधिकार
- अन्तर्राष्ट्रीय एजेण्डे पर पर्यावरणीय मुद्दे
- अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद
- विश्व व्यापार संगठन तथा उत्तर-दक्षिण सम्बन्ध
- अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में नारीवाद एवं लिंग सम्बन्धी मुद्दे
- निः शस्त्रीकरण: समस्याएं और चुनौतियां
- परमाणु अप्रसार: समस्याएं और चुनौतियां
- एशिया में क्षेत्रीय सहयोग के संगठन: आसियान तथा सार्क
- सामयिक अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य
Udaybhan sharma –
I need book