- औद्योगीकरण एवं वैश्वीकरण के युग में प्रबन्ध की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है। विश्व के समस्त व्यावसायिक व गैर-व्यावसायिक संगठनों, शिक्षा की विभिन्न विधाओं एवं प्रत्येक स्तर के प्रबन्धकों द्वारा समान प्रकार के प्रबन्धकीय कार्य किए जाते हैं। संगठन की सफलता कुशल प्रबन्धन पर निर्भर करती है। इसलिए प्रबन्ध एक महान प्रेरणा-शक्ति प्रभावी साधन, ज्ञान की तकनीक व शाश्वत एवं सार्वभौमिक सत्य के रूप में प्रकट हो गया है। यही कारण है कि आज प्रबन्ध विषय का अध्ययन, अध्यापन सभी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में जुड़ता चला जा रहा है।
- प्रबन्ध : सिद्धान्त एवं व्यवहार Management Principles & Application Book में संगठनों में मानवीय व्यवहार, संगठनात्मक प्रबन्ध एवं विभिन्न प्रबन्धकीय विचारधाराओं पर प्रकाश डाला गया है।
प्रबन्ध : सिद्धान्त एवं व्यवहार Management Principles & Application Book विषय-सूची
- प्रबन्ध: अवधारणा एवं प्रक्रिया
- प्रबन्ध की प्रकृति, क्षेत्र, महत्व एवं भूमिकाएं
- प्रबन्ध के कार्यात्मक क्षेत्र
- प्रबन्धकीय विचारों का विकास-प् (चिर-प्रतिष्ठित दृष्टिकोण)
- प्रबन्धकीय विचारों का विकास-प्प् (नव प्रतिष्ठित प्रणाली व संयोगिकी दृष्टिकोण)
- प्रबन्धकीय विचारों का विकास-प्प्प् (आधुनिक विचार)
- नियोजन (अवधारणा, महत्व, प्रकार एवं प्रक्रिया)
- निगम-नियोजन अथवा रणनीतिक नियोजन
- निर्णयन (अवधारणा, प्रक्रिया तकनीकें तथा परिबद्ध तर्कशक्ति)
- उद्देश्य निहित प्रबन्ध
- संगठन (अवधारणा, प्रकृति, प्रक्रिया व महत्व)
- अधिकार, उत्तरदायित्व तथा अधिकार-अंतरण (भारार्पण)
- केन्द्रीकरण व विकेन्द्रीकरण
- विभागीकरण
- संगठन संरचना के प्रारूप
- नियन्त्रण का विस्तार
- स्टाफिंग (नियुक्तियां): प्रकृति, कार्य एवं महत्व
- मानव संसाधन नियोजन, भरती एवं चयन
- प्रशिक्षण: महत्व व तकनीकें
- अभिप्रेरणा (अवधारणा, उद्देश्य, सिद्धान्त एवं प्रेरक)
- निदेशन (संचालन)
- नेतृत्व: अवधारणा, शैलियां व सिद्धान्त
- सम्प्रेषण (सन्देशवाहन)
- नियन्त्रण: प्रकृति, प्रक्रिया एवं महत्व
- समन्वय: प्रबन्ध का सार
- परिवर्तन-प्रबन्ध: अवधारणा, प्रकृति एवं प्रक्रिया
- प्रबन्ध के उभरते हुए क्षितिज
- कैरियर नियोजन एवं विकास
- निष्पादन मूल्यांकन
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