- देश की स्वाधीनता के अनन्तर ‘लोक प्रशासन’ कानून और व्यवस्था के क्षेत्र तक सीमित न रहकर जन-जीवन से सम्बद्ध समस्त गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। लोककल्याणकारी राज्य के अन्तर्गत विकास के चरण प्रगति की विविध दिशाओं में जिस गति से बढ़ रहे हैं उसी क्रम से नए-नए संगठनों का निर्माण और उनका विधिवत् संचालन भारत में प्रशासकों के लिए नित्य नई चुनौतियां प्रस्तुत कर रहा है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में देश के नागरिकों की बढ़ती हुई अभिरुचि के साथ ही प्रशासक वर्ग का उत्तरदायित्व भी बढ़ता जा रहा है। संक्षेप में, कहा जा सकता है कि ‘लोक प्रशासन’ आज एक ऐसा महत्वपूर्ण विषय बन गया है कि उसके विविध पक्षों और स्वरूपों के सम्बन्ध में विद्यार्थियों को अधिक-से-अधिक परिचित कराया जाए।
- द्वितीय प्रश्न-पत्र भारत में लोक प्रशासन के अधिकांश महत्वपूर्ण पहलुओं का विवेचन किया गया है। पुस्तक में केन्द्रीय सचिवालय, मन्त्रिमण्डल सचिवालय, अखिल भारतीय सेवाएं, सार्वजनिक वित्त पर नियन्त्रण, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013, भारत में प्रशासनिक सुधार जैसे विषयों पर नवीनतम सामग्री प्रस्तुत की गई है। पुस्तक को सरल भाषा एवं सुबोध शैली में लिखा गया है।
लोक प्रशासन (Public Administration) Book Syllabus
द्वितीय खण्ड: संगठन – अर्थ, औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन, संगठन के सिद्धान्तकृपदसोपान, आदेश की एकता, नियन्त्रण का क्षेत्र, समन्वय, केन्द्रीकरण, विकेन्द्रीकरण, सत्ता एवं उत्तरदायित्व। मुख्य कार्यपालिका, सूत्र एवं स्टाॅफ अभिकरण, पर्यवेक्षण, प्रत्यायोजन, नेतृत्व, संचार, निर्णय-निर्माण, लोक सम्पर्क।
तृतीय खण्ड: बजट: अर्थ एवं प्रकार, बजट के सिद्धान्त, सामाजिक-आर्थिक नीति के साधन के रूप में बजट, कार्मिक प्रशासन: अर्थ, प्रकृति एवं महत्व, नौकरशाही की प्रकृति, लोक सेवा और विकासशील समाज में इसकी भूमिका, वर्गीकरण: लोक सेवकों की भर्ती, प्रशिक्षण, पदोन्नति, लोक प्रशासन में मनोबल एवं अभिप्रेरणा।
द्वितीय खण्ड: गृह मन्त्रालय, कार्मिक पेंशन एवं लोक शिकायत मन्त्रालय का संगठन व कार्यकारण, लोक उद्यमों के प्रमुख प्रकार: विभाग, निगम एवं कम्पनी प्रणाली, लोक उपक्रमों की संसदीय समिति, वित्तीय प्रशासन: बजट का निर्माण, बजट का संसद में अनुमोदन एवं बजट का क्रियान्वयन, नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक, लोक लेखा समिति, अनुमान समिति।
- लोक प्रशासन: अर्थ तथा क्षेत्र
- लोक प्रशासन का स्वरूप: कला अथवा विज्ञान
- आधुनिक समाज में लोक प्रशासन का महत्व
- लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन
- अध्ययन के विषय के रूप में लोक प्रशासन का विकास
- लोक प्रशासन और अन्य सामाजिक विज्ञान
- लोक प्रशासन के अध्ययन के उपागम
- संगठन: औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन
- संगठन संबंधी उपागम
- संगठन के सिद्धान्त
- पदसोपान
- आदेश की एकता
- नियन्त्रण की सीमा
- समन्वय
- केन्द्रीकरण बनाम विकेन्द्रीकरण
- सत्ता (प्राधिकार) एवं उत्तरदायित्व
- प्रत्यायोजन
- मुख्य कार्यपालिका
- सूत्र तथा स्टाफ
- पर्यवेक्षण
- नेतृत्व
- संचार
- प्रशासन में निर्णय निर्माण
- लोक सम्पर्क
- बजट: अर्थ एवं प्रकार, बजट के सिद्धान्त
- सामाजिक-आर्थिक नीति के साधन के रूप में बजट
- नौकरशाही एवं लोक सेवा: विकासशील समाज में इसकी भूमिका
- लोक सेवकों की भर्ती
- लोक सेवकों का प्रशिक्षण
- लोक सेवकों की पदोन्नति
- लोक सेवा में पद वर्गीकरण
- लोक सेवा में मनोबल
- लोक सेवा में अभिप्रेरणा
भारत में लोक प्रशासन
- भारतीय प्रशासन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: ब्रिटिश काल का प्रभाव
- भारतीय प्रशासन की प्रमुख विशेषताएं
- संघीय कार्यपालिका: राष्ट्रपति
- संघीय कार्यपालिका: प्रधानमन्त्री और मन्त्रिपरिषद्
- केन्द्रीय सचिवालय: संगठन एवं कार्यप्रणाली
- मन्त्रिमण्डल सचिवालय: संगठन एवं कार्यप्रणाली
- गृह मन्त्रालय तथा कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मन्त्रालय
- भारत में लोक उद्य़म (सार्वजनिक उपक्रम)
- भारत में प्रशासन पर नियन्त्रण
- भारत में बजट सम्बन्धी प्रक्रिया
- भारत का नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक
- सार्वजनिक वित्त पर नियन्त्रण (लोक लेखा समिति तथा प्राक्कलन समिति)
- भारत में लोक सेवा: विकास
- भारत में लोक सेवाएं: पद वर्गीकरण
- अखिल भारतीय सेवाएं: भर्ती एवं प्रशिक्षण
- भारतीय प्रशासनिक सेवा
- प्रशासन में भ्रष्टाचार की समस्या
- सार्वजनिक शिकायतों का निवारण: लोकपाल एवं लोकआयुक्त
- भारत में प्रशासनिक सुधार: प्रशासनिक सुधार आयोग की अनुशंसाएं
- प्रथम एवं द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (कार्मिक प्रशासन एवं भ्रष्टाचार के विशेष संदर्भ में तुलनात्मक अध्ययन)
नारायण केवट –
बहुत ही सराहनीय