प्रस्तुत भारत में ग्रामीण एंव नगरीय समाज (Rural & Urban Society in India) पाठ्यपुस्तक विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम पर आधारित है।
- साधारणतया ग्रामीण एवं नगरीय समाज को बहुत सरल विषय के रूप में देखा जाता है। व्यावहारिक रूप से प्रत्येक विषय का अपना एक विशेष दृष्टिकोण होता है तथा उससे अनेक ऐसी अवधारणाएं सम्बन्धित होती हैं जिनके संदर्भ में ही उसका सही विश्लेषण संभव हो पाता है। ग्रामीण एवं नगरीय समाज का संबंध एक ओर संसार के सभी समाजों से हैं, वहीं दूसरी ओर नई प्रौद्योगिकी, बदलते हुए सामाजिक मूल्यों तथा सामाजिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप ग्रामीण तथा नगरीय समाज में भी आज व्यापक परिवर्तन हो रहे हैं। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के आधार पर ग्रामीण तथा नगरीय समाज को समझने के लिए परिवर्तन तथा विकास की प्रक्रिया के अन्तर्ग ही इन समाजों की वास्तविक प्रकृति को समझा जा सकता है।
- भारत में ग्रामीण एंव नगरीय समाज Rural & Urban Society in India Book ग्रामीण तथा नगरीय समाज का एक तुलनात्मक अध्ययन है। व्यावहारिक रूप से पुस्तक की विषय-वस्तु दो मुख्य भागों में विभाजित है। भारत में ग्रामीण एंव नगरीय समाज Rural & Urban Society in India Book के प्रथम भाग में ग्रामीण समाज के विशिष्ट लक्षणों, सामाजिक संस्थाओं, कृषिक वर्ग-संरचना, शक्ति-संरचना, भूमि सुधारों से उत्पन्न हरित क्रान्ति, आदि की प्रकृति को स्पष्ट करने के साथ ही ग्रामीण समाज से सम्बन्धित प्रमुख समस्याओं की प्रकृति को स्पष्ट करने के साथ ही ग्रामीण समाज से सम्बन्धित प्रमुख समस्याओं की प्रकृति पर प्रकाश डाला गया है। विभिन्न समस्याओं का निराकरण करने तथा ग्रामीण समाज में उपयोगी परिवर्तन लाने के लिए सरकार द्वारा जिन विकास योजनाओं को लागू किया गया, पुस्तक में विद्यार्थियों को उनसे सम्बन्धित नवीनतम जानकारी देने का प्रयत्न किया गया है। पुस्तक का दूसरा भाग नगरीय समाज के विश्लेषण से सम्बन्धित हैं इसके अन्तर्गत नगरीय समाज की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए नगर के प्रमुख प्रकारों, नगरीय सामाजिक संरचना, भारत में नगरीय वृद्धि तथा उसके परिणामों के साथ कुछ प्रमुख नगरीय समस्याओं की विवेचना की गयी है। पुस्तक के अन्त में नगरीय समाज पर नियोजन तथा विकास के प्रभावों का व्यावहारिक मूल्यांकन किया किया है।
- वास्तविकता यह है कि हममें से प्रत्येक व्यक्ति किसी ग्रामीण अथवा नगरीय समाज से सम्बन्धित होने के कारण हमारी सामान्य धारणा यह होती है कि यह समाज हमारे लिए नए नहीं इसके विपरीत जब हम समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के आधार पर ग्रामीण तथा नगरीय समाज को समझने का प्रयत्न करते हैं तो हमारे सामने अनेक ऐसी प्रवृत्तियां स्पष्ट होने लगती हैं जिन्हें समझने से हमारा दृष्टिकोण अधिक व्यवस्थित और वैज्ञानिक हो जाता है। इस आधार पर यदि इस पुस्तक का अध्ययन एक विशेष पाठ्यक्रम पर आधारित पुस्तक के रूप् में न करके ग्रामीण तथा नगरीय समाज की वैज्ञानिक प्रकृति को समझने के लिए किया जाए तो इससे सामान्य पाठक भी लाभान्वित हो सकते हैं।
- विभिनन विषयों की विवेचना के लिए भारत सरकार द्वारा प्रकाशित रिपोर्टों, वर्ष 2011 की जनगणना से सम्बन्धित तथ्यों तथा विभिन्न शोध-कार्यों से प्राप्त निष्कर्षें के आधार पर विद्यार्थियों को नवीनतम जानकारी देने का प्रयत्न किया गया है।
भारत में ग्रामीण एंव नगरीय समाज Rural & Urban Society in India Book विषय-सूची
- ग्रामीण समाज के विशिष्ट लक्षण
- ग्रामीण समुदाय की संस्थाएं: जाति, परिवार तथा जजमानी
- कृषक समाज
- भारत में भूमि-व्यवस्था एवं भूमि-सुधार
- ग्रामीण वर्ग-संरचना
- ग्रामीण सामाजिक संरचना के बदलते आयाम
- हरित क्रान्ति एवं इसके सामाजिक परिणाम
- परिवर्तनशील ग्रामीण शक्ति-संरचना
- ग्रामीण विकास: अवधारणा, उपागम तथा कार्यक्रम
- पंचायती राज
- भू-दान आन्दोलन
- ग् मीण निर्धनता
- कृषिक असंतोष एवं कृषक आत्महत्याएं
- भारत में समकालीन कृषक आन्दोलन
- नगरीय समाज की विशेषताएं
- ग्रामीण-नगरीय सातत्य एवं अन्तक्र्रिया
- कस्बा, नगर महानगर, घेटो तथा वैश्विक नगर
- नगरीय सामाजिक संरचना: परिवार, वर्ग एवं औपचारिक संगठन
- भारत में नगरीय वृद्धि एवं नगरीकरण: प्रकृति, कारक तथा परिणाम
- नगरीय समस्याएं: महिन बस्तियां नगरीय गरीबी तथा नगरीय हिंसा
- नगरीय स्थानीय शासन एवं नगरीय नवीनीकरण
- नगरीय नियोजन एवं विकास
Vijay singh –
Nice books