सामाजिक मानवशास्त्र Social Anthropology पुस्तक के इस संस्करण को नवीन रूप में विद्यार्थियों एवं विज्ञ-प्राध्यापकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। यह संस्करण पूर्णतः परिशोधित व परिवर्द्धित है। इसमें विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठकों की आवश्यकता को ध्यान में रख कर नवीन सामग्री जोड़ी गई है। भाषा, शैली एवं विषय की स्पष्ट अभिव्यक्ति पुस्तक की अपनी विशिष्ट विशेषता है। विषय से सम्बन्धित नवीनतम प्रामाणिक सूचनाओं (जनगणना 2011) को पुस्तक में सम्मिलित करने का पूर्ण प्रयत्न किया गया है।
मानव और उसकी कृतियों का अध्ययन ही मानवशास्त्र का प्रमुख विषय रहा है। अपने आपको समझने की जिज्ञासा मानव में प्रारम्भ से ही रही है और इसी जिज्ञासा के कारण मानवशास्त्र का एक विज्ञान के रूप में विकास हो पाया। मानव सदैव ही प्रकृति के साथ संघर्ष एवं अनुकूलन करता रहा है, उसे अपने अनुरूप ढालता रहा है और अपने अस्तित्व की रक्षा करता रहा है। अपनी विविध आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मानव ने अनेक प्रविधियों का विकास किया, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक संगठन को जन्म दिया। मानवीय क्रियाओं के फलस्वरूप ही अनेक भौतिक एवं अभौतिक वस्तुओं का निर्माण तथा विकास हुआ, संस्कृति का सृजन हुआ। मानवशास्त्र इसी संस्कृति और मानवीय स्वभाव की मूलभूत प्रकृति को समझने का प्रयास है। यह शास्त्र मानव और उसकी सामाजिक क्रियाओं का समग्रता से अध्ययन करता है।
सामाजिक मानवशास्त्र Social Anthropology Book विषय-सूची
- मानवशास्त्र की प्रकृति एवं क्षेत्र
- सामाजिक मानवशास्त्र की प्रकृति एवं क्षेत्र
- संस्कृति
- सामाजिक संरचना: परिवार
- विवाह
- नातेदारी-व्यवस्था
- भारत में जनजातीय जनांकिकी
- भारतीय जनजातीय समस्याएं, उपचार, कल्याण-कार्य एवं बदलते परिवेश
- व्यावहारिक मानवशास्त्र
- सामाजिक मानवशास्त्र की पद्धतियां एवं माॅडल
- संरचना एवं प्रकार्य
- प्रजाति, प्रजातिवाद एवं भारत की प्रजातियां
- धर्म, जादू एवं विज्ञान
- आदिम राजनीतिक संगठन (प्रथाएं, कानून, न्याय तथा सरकार)
- आदिम अर्थ-व्यवस्था
- वंश-समूह, गोत्र, भ्रातृदल, द्विदल संगठन एवं गोत्रार्ध
- टोटम एवं टोटमवाद
- युवागृह (युवा संगठन) (संरचना एवं प्रकार्य)
- मानव की उत्पत्ति और उद्विकास: पशु जगत में मानव
- राजस्थान की जनजातियां (विकास एवं कल्याण कार्यक्रम)
- बिहार एवं झारखण्ड की जनजातियां (मुण्डा, उरांव तथा संथाल)
- बिहार एवं झारखण्ड की जनजातियों पर औद्योगीकरण एवं नगरीकरण का प्रभाव
- प्राग्-इतिहास: पुरापाषाण एवं नवपाषाण युग
- आनुवंशिकी एवं सुजननिकी (सुजनन-विज्ञान) (गाल्टन, वीजमेन एवं मेण्डल का योगदान तथा सुजननिक कार्यक्रम)
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